क्यों फिर रखते दरकार बाती दिया बिन बेकार क्यों फिर रखते दरकार बाती दिया बिन बेकार
देख कर परिंदे के नन्हे पर सैय्याद सकपका गया देख कर परिंदे के नन्हे पर सैय्याद सकपका गया
सहन किए अत्याचार अपनों के ख़ातिर हँसी मैं सहन किए अत्याचार अपनों के ख़ातिर हँसी मैं
निढाल शरीर को सहलाती हैं मेरे चाँद की शीतल किरणें निढाल शरीर को सहलाती हैं मेरे चाँद की शीतल किरणें
ज़रा सोचा है कैसे मैं जियूँगा, दिया जो ज़ख्म है वो कैसे सियूँगा। ज़रा सोचा है कैसे मैं जियूँगा, दिया जो ज़ख्म है वो कैसे सियूँगा।
रह -रह के मुठियाँ जोश से भर रहीं है क्रोध बड़ा, मत इतना ताप दो। रह -रह के मुठियाँ जोश से भर रहीं है क्रोध बड़ा, मत इतना ताप दो।